हड़प्पा सभ्यता की मुहरें
विभिन्न हड़प्पाई स्थलों से प्राप्त मुहरें इस काल के इतिहास निर्माण की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। मुहरों की प्राप्ति हड़प्पा पूर्व स्थलों से भी हुई है, लेकिन हड़प्पा काल में इनका प्रचलन काफी बढ़ गया दिखता है। मुहरों का निर्माण स्टीटाइट (सेलखड़ी), कांचली मिट्टी, पकी मिट्टी (टेराकोटा), तथा अगेट (Agate) से किया गया है।
ज़्यादातर मुहरें वर्गाकार हैं, जिनका निर्माण खुले साँचे की एकल घुमाव विधि (Open Mould Single Rotation) से किया गया है। मुहरों पर मनुष्य, उपास्य, पशु-पक्षी तथा कथा-चित्रों के अंकन के अतिरिक्त कुछ लेख भी अंकित हैं। अब तक 2500 से अधिक हड़प्पाई मुहरों की प्राप्ति हो चुकी है, जिनमें सर्वाधिक मुहरें मोहंजोदड़ो से प्राप्त हुई हैं।
कुछ महत्वपूर्ण मुहरें
हड़प्पा : गरुड़ जैसी आकृति चित्रित मुहर
मोहंजोदड़ो : (क) पशुपति शिव की मुहर- हाथी, भैंस, बकरा, गैंडा, बाघ और हरिण के अतिरिक्त सर्पों के साथ योगी की आकृति, जिसे सर जॉन मार्शल ने शिव का आदि रूप (प्रोटो शिवा) माना और पशुपति नाम दिया। एक मुहर में तीन सींगों का मुकुट पहने पशुपति के सामने घुटनों के बल झुका उपासक भी चित्रित है।
(ख) सप्तमातृका- सात मातृदेवियों का अंकन
(ग) मेसोपोटामिया सभ्यता की बाज आकृति वाली मुहर
चंहूदड़ो : (क) ध्वजा मुहर, जिस पर घड़ियाल और मछ्ली अंकित हैं।
(ख) वनस्पति देवी या प्रकृति देवी : नग्न नारी आकृति, जिसकी योनि से वनस्पति की उत्पत्ति दिखाई गयी है। इतिहासकारों ने इसे मातृदेवी का ही रूप माना है।
लोथल : (क) भंडागार से विभिन्न मुहरों की छाप
(ख) पर्शियन खाड़ी की मुहरों जैसी मुहर
(ग) ताम्र मुहरें
आलमगीरपुर : बाज आकृति वाली मेसोपोटामियाई मुहर
हड़प्पा सभ्यता की मुहरें मेसोपोटामिया के विभिन्न व्यापार केन्द्रों – उर, किस, लगास, उम्मा आदि से भी प्राप्त हुई हैं, जिनके अध्ययन के आधार पर जी॰ टी॰ गाड ने दोनों सभ्यताओं के संपर्क का समय 2350 ई॰ पू॰ से 1900 ई॰ पू॰ के बीच निर्धारित किया है।